संदेश

2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कौशल-जीवन -१०

चित्र
10 अमर की शादी हो गई , बेहद साधारण तरीक़े से धार्मिक रितियो के साथ। घर के बग़ल की ख़ाली ज़मीन में पार्टी दी गई। लेकिन विजय व एलिज़ाबेथ को इन सब में कोई ख़ास रुचि नहीं रही । विमला और सुरेश ने उनके इस रूखापन को लेकर कई बार टोका भी लेकिन उन दोनो में कोई बदलाव नहीं आया। यहाँ तक कि सुहासिनी और मयंक ने भी बहुत समझाया लेकिन वे अपने रूटीन को छोड़ने तैयार नहीं हुए। हाँ एलिज़ाबेथ कभी कभी अपने कैमरे में कुछ तस्वीरें उतार लेती। शादी के बाद जब सभी मेहमान चले गए तो विजय का इस्पाती ख़ामोशी फट पड़ा , यदि अमर और मयंक ने मामले में बीच बचाव नहीं करते तो विजय का घर निकाला तय था। आख़िर वह कौन सी खोज थी , जिसने विजय को सामाजिक दायित्वों से दूर कर रखा था। अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल हो रहा था । विजय को न घर के लोगों की परवाह थी और न ही मोहल्ले में चल रहे कानाफूसी की ही चिंता थी। वह अपने धुन में लगा रहा और एलिज़ाबेथ भी। परंतु इतना तो तय था कि विजय कोई नई खोज में लगा हुआ है , और कोई भी नई खोज साधारण नहीं होता। पागलपन की हद लेकर चल रहे दोनो के बीच भी कम ही बात होती । हँसना -खिलखिलाना तो किसी ने देखा ही नहीं। यहाँ ...

कौशल-जीवन -९

9 और विजय ! विजय ने बता दिया था कि वह ईतवार को रायपुर पहुँच जाएगा। और इस बार वह हमेशा के लिए आ रहा है। उसका कमरा तैयार कर दे। एयर कंडीशनर भी लगवा देने का फ़रमाइश भी कर दिया था । विजय के आने की ख़बर से सभी ख़ुश थे और उसके मुताबिक़ उसका कमरा तैयार किया जाने लगा। कमरे को सजाने की ज़िम्मेदारी सुहासिनी ने ले ली , विजय के पसंद का रंग दीवालों में लगाया गया । और विजय को लेने पूरा परिवार एयरपोर्ट जाने का भी कार्यक्रम तय हो गया। तय वक़्त से पहले वे एयरपोर्ट के लिये रवाना हुए , नाश्ता फूँडहर चौक में करने का कार्यक्रम था , वहाँ साहू होटल के समिसा-चना शहर में चर्चित था, कई लोग तो शहर से सिर्फ़ समोसा खाने जाते थे , इससे पहले फूल चौक से बुके और हार ले लिया गया था। पुराना बस स्टैंड के पास के मधु स्वीट से काजू कतली और दूसरी मिठाइयाँ ले ली गई थी। जैसे जैसे फ़्लाइट के आने का समय नज़दीक आ रहा था वैसे वैसे चेहरों में ख़ुशियाँ चमकने लगी। आकाश में जैसे ही प्लेन दिखा तो सुहासिनी चिहंक उठी थी, वो देखो! उसकी चीख़ पर जब सब उसकी ओर देखने लगे तो वह झेप गई। इंतज़ार की घड़ियाँ समाप्त हो चुकी थी । विजय कभी भी सामने आ...

कौशल-जीवन -८

8  अमर को अब उचित अवसर की तलाश थी, ताकि अपनी शादी की बात कर सके। इन दिनो अमर फिर सज-धज कर निकलने लगा था, दिन मे चार-चार शर्ट तक बदल देता और अमर की प्रेम कहानी भी सुर्ख़ियाँ बटोरने लगी। लोगों का तो यहाँ तक कहना था कि अमर उसी कलर का कपड़ा पहनता हैं जिस रंग की उसकी प्रेयसी विशाखा पहनती है। उड़ते-उड़ते जब यह बात सुरेश तक पहुँची तो सुरेश ने कहा कि लड़की के घर जाकर शादी का प्रस्ताव दे आते हैं, तो अमर की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन जब सुरेश को यह पता चला कि विशाखा दूसरी जाति की है तो उसके मन मे हिचकिचाहट तो हुई लेकिन बेटे की ख़ुशी से बढ़कर अब कुछ नहीं था इसलिये तय दिन मेन विशाखा के घर गये। अमर ने विशाखा को सब कुछ पहले से बता दिया था। लेकिन विशाखा ने यह बात घर मेन बताने की बजाय यह तय किया कि पहले से विवाद उत्पन्न करने की बजाय जिस दिन वे लोग आएँगे उसी दिन ही सब निपट लेंगे। कालबेल बजाते ही दरवाज़ा विशाखा ने ही खोला और सुरेश का पैर छूते हुए भीतर ले आई। विशाखा के पापा घर में ही थे।  औपचारिक परिचय के बाद जब सुरेश ने शादी का प्रस्ताव रखा तो ड्राइंग रूम में सन्नाटा पसर गया। प्रस्ताव के द...

कौशल-जीवन -७

7 सुहासिनी को इस घर से गए तीन बरस हो गए थे। वह एक बच्चे की माँ बन चुकी थी। कहने को तो सुहासिनी का इस घर से कोई नाता ही नहीं बचा था लेकिन हक़ीक़त में वह अब भी इस घर से अलग नहीं हो पाई थी। और अमर भी कहाँ सुहासिनी से । इन सालों में विमला और सुरेश को कभी पता ही नहीं चला अमर का सुहासिनी के घर में न केवल आना जाना है बल्कि सुहासिनी के पति मयंक से भी उसके मधुर संबंध है। ऐसा भी नहीं है कि अमर ने सुहासिनी की घर वापसी की कोशिश नहीं की। वह कोई न कोई बहाने से सुरेश या विमला के सामने उसका नाम ले देता था और सॉरी कह देता था। एक बार तो उसने विमला और सुरेश के सामने यह भी कहा की सुहासिनी बाज़ार में दिखी थी और वह अपने पति के साथ बहुत ख़ुश दिखाई दे रही थी लेकिन तब सुरेश ने उसे झिड़कते हुए साफ़ कह दिया था कि उसके बारे में कोई बात नहीं होगी, हालाँकि बाद में विमला ने अमर से अकेले में पूछताछ की तब भी अमर ने कुछ नहीं बताया था। अमर हफ़्ते पंद्रह दिन में सुहासिनी के घर ज़रूर जाता। और जब भी वह लौटता कुछ न कुछ बहाने से विमला के सामने ज़िक्र कर देता। ऐसे ही एक रात सुहासिनी को लेकर माँ बेटे में चर्चा चल ही रही थी कि ...

कौशल-जीवन -६

6 उस शाम जब सुरेश घर आया तो वह बेहद ग़ुस्से में था, आते ही उसने पूछा अमर कहाँ है? विमला ने बताया कि वह तो संजय की बहन को छोड़ने उसके घर गया है, वह महादेव घाट आई थी , तो मैंने ही उसे घर ले आयी और बातचीत में अंधेरा हो गया तो मेरे ही कहने पर अमर उसे घर छोड़ने गया है। लेकिन हुआ क्या है? आप ऐसे ग़ुस्से में क्यों हैं? विमला की बात सुन सुरेश का ग़ुस्सा ग़ायब हो गया था। उसने हँसते हुए कहा कि किसी ने उसे बताया कि अमर किसी लड़की के साथ घूम रहा है, तो मुझे ग़ुस्सा आ गया। इसके बाद दोनो देर तक हँसते रहे। तभी सुरेश गम्भीर होते हुए बोला ये उम्र ही ऐसी है , जब लड़के बहक जाते हैं, आजकल तो देख ही रहे हो ज़माना कैसा चल रहा है , आए दिन ऐसी ख़बरें आते रहती है। इसलिए मुझे ग़ुस्सा आ गया था, इस पर विमला बोली मेरे बच्चों पर मुझे पूरा भरोसा है वे ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे हमें सर झुकाना पड़े। सुरेश ने कहा इसमें सर झुकने की बात नहीं है , लेकिन सावधानी ज़रूरी है।  तभी विजय छत से नीचे उतरते हुए कहा कि इस बार गर्मी की छुट्टियों में कोई नई जगह जानी चाहिए। उसका समर्थन ज़रने सुहासिनी भी कमरे से बाहर आ गई। तो स...

कौशल-जीवन -५

5 बात का बतंगड़ तो उस दिन हुआ जब अमर ने आगे पढ़ाई जारी रखने से मना करने लगा। विमला और सुरेश उसे समझा रहे थे कि आज के दौर में पढ़ना लिखना कितना ज़रूरी है , लेकिन अमर इस ज़िद पर अड़ा था कि पढ़ने लिखने का क्या फ़ायदा जब आगे जाकर अपना बिज़नेस ही संभालना है । लेकिन विमला के वात्सल्य के सामने झुकना पड़ा और वह इस शर्त पर पढ़ाई जारी रखने को तैयार हो गया कि वह शाम के बाद बिज़नेस संभालेगा। कालेज के पहले दिन जब उसकी जमकर रैकिंग हुई तो वह घर आकर फिर ज़िद करने लगा लेकिन दूसरे दिन अमर के साथ सुरेश भी कालेज गया और प्रिन्सिपल से मिलकर अमर के साथ हुई रैकिंग पर चर्चा की। रैकिंग लेने वाले छात्रों से माफ़ी मँगवाई गई। इसके बाद तो अमर की रुचि धीरे-धीरे फिर पढ़ाई की तरफ़ लगने लगा और वह शाम को दुकान जाने की बजाय दोस्तों के साथ घूमने चला जाता था। लेकिन घर के सख़्त नियमो के चलते आठ-नौ बजे तक लौट आता था। एक दिन अमर ने बताया कि वह दोस्तों के साथ नंदनवन जा रहा है, क्योंकि आज कालेज की छुट्टी है। थोड़ा ना-नुकूर के बाद विमला की समझाईश पर सुरेश इस शर्त पर राज़ी हो गया कि वह दिन डूबने से पहले शाम तक घर लौट आएगा।  ज...

कौशल-जीवन -४

चित्र
4 बच्चे कितना भी बड़े हो जायें वे माँ-बाप की नज़रो में बच्चे ही होते हैं। यही वजह है कि अमर के हाईस्कूल पहुँच जाने के बाद भी विमला और सुरेश उसे अकेले भेजने से हिचकिचाते थे । अमर उनके रोक-टोक से चिड़चिड़ा जाता था, और बोल पड़ता था कि वह बच्चा नहीं रहा। लेकिन उसकी कौन सुनता।  खारुन में एनिकट में डूब मरने की घटना आये दिन होने लगी थी, लेकिन बच्चे कहाँ मानने वाले थे। वे प्रायः हर रविवार को नदी में नहाने चले ही जाते थे। थोड़ी भी देर होती तो विमला की चिंता बढ़ जाती, और सुरेश को विमला के जिद के चलते उन्हें लाने जाना हाई पड़ता । ऐसे ही एक दिन अमर और विजय के देर हो जाने पर सुरेश उन्हें लेने नदी तट पर पहुँचा तो यह देखकर हैरान रह गया कि विजय एक पेड़ के नीचे खड़ा किसी से बात कर रहा है, सुरेश को लाख चेष्टा के बाद भी कोई और दिखाई नहीं दिया तो वह थोड़ी नज़दीक पहुँच गया। तब भी कोई नहीं दिख रहा था , हाँ विजय की आवाज़ सुनाई दे रही थी लेकिन आवाज़ स्पष्ट नहीं था। सुरेश डर गया, और विजय को ज़ोर से आवाज़ दी तो वह चुपचाप चला आया। सुरेश ने जब उससे पूछा कि वह किससे बात कर रहा था तो उसने कोई उत्तर नहीं दिया। ह...

कौशल-जीवन -३

3  अमर के मुंडन संस्कार के लिए पंडित जी द्वारा निर्धारित तिथि को अब एक सप्ताह ही रह गया था, भोरमदेव जाने की सारी तैयारियाँ पूरी कर ली गई। यह भी तय किया गया कि भोरमदेव से लौटने के दूसरे दिन ही भगवान श्री सत्यनारायण की कथा हवन के पश्चात मोहल्ले व परिवार वालों को भोजन भी कराया जाएगा और इसी दिन बाबा के द्वारा दिए रुद्राक्ष को भी पहना देंगे।आख़री समय में यात्रा में परिवर्तन कर दिया गया , और भोरमदेव से लौटते में डोंगड़गढ़ में माता बमलेश्वरी देवी के दर्शन का कार्यक्रम जोड़ दिया गया । निर्धारित तिथि और समय पर सब भोरमदेव पहुँच गए । भोरमदेव पहुँचते ही अमर में परिवर्तन देख सब ख़ुश हो गए , अब तक चुप रहने वाले अमर की चंचलता देखते ही बन रहा था , मंदिर में दर्शन के दौरान वह उछलकूद करने लगा उसे संभालना मुश्किल हो रहा था । शिव जी के दर्शन पश्चात मुंडन संस्कार का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ । फिर सभी भोरमदेव के मनोरम दृश्य का आनंद लेने लगे। 10 वी शताब्दी के इस मंदिर की भव्यता और सुंदरता स्थापत्य शिल्पकला का बेजोड़ नमूना है। नागर शैली के इस बेजोड़ मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा ने की है, ।मंदिर के चारो ओर म...

कौशल-जीवन-२

चित्र
2 गर्मी का महीना बीत चुका था। वर्षा के फुहार से महादेव घाट में पानी चढ़ने लगा था। नदी के बढ़ते जल स्तर को देखने की लिए आवाजाही बढ़ गई थी। ऐसे समय में सुरेश की दुकानदारी में विमला भी हाथ बाँटती थी। नदी का जल स्तर देखने वाले लोग मंदिरो का भी दर्शन करते थे। कई लोग पिकनिक मनाने आते थे। इस बीच विजय के गोद लेने की सारी औपचारिकताएँ पूरी हो गई , और क़ानूनी रूप से विजय अब विमला और सुरेश का पुत्र हो गया था। वहीं कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने विजय की परवरिश में मदद का आग्रह किया लेकिन उन्होंने सभी के आग्रह को विनय-पूर्वक मना कर दिया। विमला और सुरेश प्रतिदिन शिव मंदिर तो जाते ही थे। अब वे हर रविवार को दोनो बच्चों को लेकर विवेकानंद आश्रम , गायत्री मंदिर , साई मंदिर भी जाने लगे। सावन लगते ही महादेव घाट में शिव भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी थी। ग्राहकों की आवक के चलते अब सुरेश ने मोहल्ले के ही एक युवक को नौकरी पर रख लिया , उसका नाम बुधारु था। कहने को तो उसने बुधारु को एक माह के लिए रखा था लेकिन वह नियमित जैसा हो गया। सावन के बाद भी ग्राहकों की भीड़ बनी रही।  असल में नदी के पार अमलेश्वर व आसपास के गाँवो ...

कौशल -जीवन -1

छत्तीसगढ़ दुनिया का एकमात्र ऐसा राज्य है , जिसे माँ का दर्जा प्राप्त है । इसलिए इसे छत्तीसगढ़ महतारी भी कहा जाता है। पूरा राज्य जंगल, नदी, पहाड़ और मैदानी क्षेत्र में बँटा हुआ है । मैदानी क्षेत्र में एक तरफ़ भरपूर उपजाऊ भूमि है तो दूसरी तरफ़ सघन जंगली क्षेत्र है। महाराष्ट्र, आँध्रप्रदेश, झारखंड , उड़ीसा , मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा से सटा होने की वजह से भाषा, संस्कृति, सभ्यता समरूप है। मिली-जुली संस्कृति ने भारत के दूसरे प्रांत के लोगों को ख़ूब आकर्षित किया, और वे यहाँ जीवन-यापन करने तो आए थे लेकिन यहीं के होकर रह गए। भरपूर खनिज संसाधन , कृषि और जंगल जीवन-यापन के प्रमुख साधन हैं। इस प्रदेश की राजधानी रायपुर है, जो पूरी तरह आधुनिकता के रंग में रच बस गया है। रायपुर देश के उन शहरों में शुमार हो चला है, जो रात में भी जागता रहता है। प्रदेश की राजनीति का केंद्र रायपुर में सभी तरह के लोग रहते हैं । अच्छे भी , बुरे भी । धर्म-अधर्म की इस नगरी के लोगों की रफ़्तार बहुत तेज़ है । कभी 140 तालाबों के इस शहर में अब बहुत कम ही तालाब रह गए हैं , जिनमे बूढ़ातालाब , कटोरा तालाब और मेरिंन ड...

अपनी बात

चित्र
ये सच है कि धनहीन व्यक्ति के लिए इस संसार में जीवन चलाना बहुत मुश्किल है , रोज़ स्वयं को अपने व अपने परिवार के लिए रोज़ मारना पड़ता है , लेकिन यह भी उतना ही सच है कि ईमानदारी और न्यायपूर्ण तरीक़े से धन कमाकर जीवन जीने का आनंद ही सर्वोत्तम है । इसके बाद भी धन की लालसा आदमी में शैतान ले  आता है । स्वयं को भौतिक सुख में ले जाते हुए वह विकास का दावा तो करता है लेकिन असल में वह किस तरह का विनाश की ओर जा रहा है वह देखना नहीं चाहता। इसके बाद भी हम भले ही चाँद पर पहुँचने का दावा कर अपनी सोच की ऊँचाइयाँ दिखा रहे हो लेकिन  अब भी हम जाति-धर्म की संकीर्णता से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। तो फिर चाँद पर पहुँचने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता। सच कहूँ तो संकीर्ण सोच से कभी भी विकास का मज़बूत क़िला बन ही नहीं सकता और जब क़िला मज़बूत नहीं होगा तो संकीर्ण सोच से उपजे नफ़रत की आग से वह कभी भी ख़ाक हो जाएगा । और सारा विकास धरा का धरा रह जाएगा और हम वहीं खड़े होंगे जहाँ से शुरुआत किए थे। कोरोना काल को ही देख लीजिए , जिस धर्म और उनके भगवान अल्लाह गॉड के लिए मनुष्य लड़ता रहा , क्या हुआ ? धर्म , आस्था , ...