कौशल -जीवन -1


छत्तीसगढ़ दुनिया का एकमात्र ऐसा राज्य है , जिसे माँ का दर्जा प्राप्त है । इसलिए इसे छत्तीसगढ़ महतारी भी कहा जाता है। पूरा राज्य जंगल, नदी, पहाड़ और मैदानी क्षेत्र में बँटा हुआ है । मैदानी क्षेत्र में एक तरफ़ भरपूर उपजाऊ भूमि है तो दूसरी तरफ़ सघन जंगली क्षेत्र है। महाराष्ट्र, आँध्रप्रदेश, झारखंड , उड़ीसा , मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सीमा से सटा होने की वजह से भाषा, संस्कृति, सभ्यता समरूप है। मिली-जुली संस्कृति ने भारत के दूसरे प्रांत के लोगों को ख़ूब आकर्षित किया, और वे यहाँ जीवन-यापन करने तो आए थे लेकिन यहीं के होकर रह गए। भरपूर खनिज संसाधन , कृषि और जंगल जीवन-यापन के प्रमुख साधन हैं।
इस प्रदेश की राजधानी रायपुर है, जो पूरी तरह आधुनिकता के रंग में रच बस गया है। रायपुर देश के उन शहरों में शुमार हो चला है, जो रात में भी जागता रहता है।
प्रदेश की राजनीति का केंद्र रायपुर में सभी तरह के लोग रहते हैं । अच्छे भी , बुरे भी । धर्म-अधर्म की इस नगरी के लोगों की रफ़्तार बहुत तेज़ है । कभी 140 तालाबों के इस शहर में अब बहुत कम ही तालाब रह गए हैं , जिनमे बूढ़ातालाब , कटोरा तालाब और मेरिंन ड्राइव के नाम से चर्चित तेलीबाँधा तालाब प्रमुख है , मंदिरो और मठ के इस शहर को ईश्वर का भरपूर आशीर्वाद प्राप्त है ।
हिंदू- मुस्लिम एकता का मिसाल इस शहर में कभी सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए तो इसकी वजह आध्यात्मिक जीवन शैली की धारा है ।
पुराने शहर में महामाया मंदिर, दूधाधारी मठ , कंकाली तालाब स्थित है । कहते हैं कि छःमसी रात में इसका निर्माण हुआ था। कई मोहल्लों में शीतला मंदिर है तो सभी तरह के देवी - देवताओं के मंदिर यहाँ मिल जाएँगे।
राजधानी बनने के बाद रायपुर की रफ़्तार तेज़ हो गई , और लोगों का जीवन स्तर भी विभक्त होने लगा । एक तरफ़ अमीरों की महँगी कालोनी तो दूसरी तरफ़ झुग्गी बस्तियों का रेला।
परंतु इन सब बातों से किसी को कोई ख़ास लेना - देना कभी नहीं रहा।रायपुर के मौसम पर लोग कहते हैं , यहाँ दो ही तरह का मौसम है, गर्मी और बहुत गर्मी।
ऐसे ही एक बहुत गर्मी के महीने में महादेव घाट के किनारे में सुबह-सुबह कुत्तों के भौकने के आवाज़ के बीच बच्चे की रोने की आवाज़ सुनाई देने लगी । लोग आवाज़ सुन जुटते गए और कुत्तों को भगा दिया गया।
किसी ने पास ही के थाने में सूचना दे दी । दो पुलिस वाले भी आ गए। तब तक विमला और सुरेश उस बच्चे को गोद में उठा चुके थे। वे उसे अपने पास ही रखना चाहते थे, लेकिन पुलिस वालों ने क़ानून का ऐसा डर दिखाया कि उन्हें पुलिस वालों के साथ थाना जाना ही पड़ा । 
पुलिस वालों ने साफ़ कह दिया कि यह बच्चा उसे दे ही नहीं सकते । गोद लेने के क़ानूनी प्रक्रिया के बाद ही यह बच्चा उन्हें मिलेगा । लेकिन विमला ज़िद पर अड़ गई , और बच्चे को लेकर सीधे कलेक्टर के पास चली गई। और तभी लौटी  जब कलेक्टर ने उन्हें गोद लेने की प्रक्रिया पूरी होते तक बच्चे को उसे रखने की अनुमति दे दी । काग़ज़ी कार्रवाई के बाद विमला और सुरेश महादेव घाट स्थित शिव नंदिर पहुँच गए। मंदिर  में नवजात को शिवलिंग के समक्ष रखकर आशीर्वाद माँगा। और फिर वहीं पास में स्थित अपने घर आ गए । तब तक पूरे रायपुरा को यह ख़बर लग गई थी , लोग बच्चे को देखने घर आने लगे। रात तक लोगों का हुजुम लगा रहा । लोग आते और आशीर्वाद भी देते।
विमला और सुरेश का पहले से ही एक बेटा अमर था। एक तरफ़ विमला दोहरा मातृत्व सुख पाकर अभिभूत थी तो अमर छोटा भाई पाकर ख़ुश था। वह बच्चे को कभी छू कर देखता तो कभी उसे गोद में लेने की कोशिश करता , तीन साल के अमर के इस बाल-सुलभ हरकत से कई लोग हंस भी देते ।
दूसरे दिन पंडित राधाकिशन पांडे जी आए । देव पंचांग खोलकर बैठ गए। और फिर बच्चे का नाम विजय कर दिया गया। विजय के आगमन पर छठवे दिन भव्य कार्यक्रम करने और पूरे रायपुरा को भोजन कराने का निर्णय ले लिया गया। 
किराने की दुकान से आजीविका चलाने वाले विमला और सुरेश बहुत ख़ुश थे, जो जैसा कहता वे वैसा ही उपाय करते । पास ही रहने वाली नाई दाईं ने रोज़ आकर नि:शुल्क नहलाने और मालिश की ज़िम्मेदारी ले ली थी। विजय की ख़ूबसूरती के साथ विमला और सुरेश की प्रसिद्धि फैलने लगी थी । छठी की तैयारी ज़ोर-शोर से की जा रही थी। पूरा मोहल्ला इस तैयारी में लगा था। विमला और सुरेश रोज़ मंदिर जाते । धार्मिक प्रवृत्ति के इस परिवार की ख़ुशियों का कोई ठिकाना नहीं था।
छठी के दिन सुबह-सुबह सब महादेव घाट से स्नान कर मंदिर के दर्शन कर लौट रहे थे , तभी एक अघोरी बाबा आ गए। उन्होंने इस दम्पत्ति को आशीर्वाद देते हुए विजय के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा -यह बालक अत्यंत भाग्यशाली है, लोक कल्याण के कार्य से इसकी प्रसिद्धि पूरे विश्व में फैलेगी। इतना कहकर उसने हवा में हाथ ऊपर किया और जब मुट्ठी खोली तो हाथ में रुद्राक्ष था, उसे देते हुए कहा इस बालक के गले में पहना देना। 
इतना कहकर अघोरी बाबा चले गए ।अमर यह सब कौतुहल से देख रहा था। अचानक अमर अघोरी बाबा की तरफ़ दौड़ने लगा , विमला और सुरेश उसे रोकने की कोशिश भी किए लेकिन वह नहीं रुका। अघोरी बाबा के पास पहुँचकर उनके वस्त्र खिंचने लगा।
अघोरी बाबा ने अमर की तरफ़ देखा तो अमर बाबा की बड़ी-बड़ी आँखे देख डर गया । वह भागकर विमला के आँचल को पकड़कर दुबक गया। अघोरी बाबा रुके नहीं, सीधा चले गए।
इसके बाद सब घर आ गए। बाबा के इस अप्रत्याशित व्यवहार से दोनो डर गए थे, उन्हें अमर को लेकर चिंता सताने लगी। लेकिन घर में चल रहे ख़ुशी के माहौल में ऐसे शामिल हो गए कि उन्हें बाक़ी कुछ याद ही नहीं रहा।
पंडित राधाकिशन पांडे आ चुके थे और सत्यनारायण की कथा की तैयारी में लग गए थे, सत्यनारायण की कथा के पश्चात भोजन का कार्यक्रम चलता रहा । पूरा गाँव इस कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। स्वादिष्ट भोजन की हर तरफ़ तारीफ़ हो रही थी।
मेहमानों को विदा कर जब विमला और सुरेश थोड़ा आराम करने के ध्येय से आँगन में बैठे थे , तभी अमर पर उनका ध्यान गया। वह चुपचाप एक किनारे पर बैठा था । विमला उसे गोद में लेकर आ गई तो वह माँ की गोद में ही सो गया । घर में ख़ुशियों का माहौल था। विजय के आने के बाद से ही किराना दुकान की आमदनी बढ़ गई थी, लेकिन विमला और सुरेश को अमर की चुप्पी सालने लगी थी। जब से अघोरी बाबा से अमर की भेर हुई थी तब से वह चुप चुप रहने लगा था , इससे पहले वह अपनी बाल सुलभ हरकतों से पूरे घर और मोहल्ले में चर्चित था । लेकिन अब वह चुपचाप विजय के पास ही बैठे रहता । कुछ दिनो तक तो किसी ने अमर में आए इस परिवर्तन को नहीं देखा लेकिन अब अमर के बदले इस व्यवहार को महसूस करने लगे थे। अमर बाहर निकलता और कोई आवाज़ देता तो उलटे पाँव घर के भीतर दाख़िल हो जाता था। जबकि पहले वह दौड़कर बुलाने वाले के पास जाता, उससे खेलता, चिढ़ता-चिढ़ाता था।
विमला और सुरेश की चिंता तब और बढ़ गई जब किसी पड़ोसी ने यह कह दिया कि विजय को ज़्यादा प्यार मिलता देख अमर में यह परिवर्तन आया है , तब से विमला उसका ज़्यादा ही ख़याल रखती, लेकिन अमर में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं हुआ।

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