कौशल-जीवन-२
2
गर्मी का महीना बीत चुका था। वर्षा के फुहार से महादेव घाट में पानी चढ़ने लगा था। नदी के बढ़ते जल स्तर को देखने की लिए आवाजाही बढ़ गई थी। ऐसे समय में सुरेश की दुकानदारी में विमला भी हाथ बाँटती थी। नदी का जल स्तर देखने वाले लोग मंदिरो का भी दर्शन करते थे। कई लोग पिकनिक मनाने आते थे। इस बीच विजय के गोद लेने की सारी औपचारिकताएँ पूरी हो गई , और क़ानूनी रूप से विजय अब विमला और सुरेश का पुत्र हो गया था। वहीं कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने विजय की परवरिश में मदद का आग्रह किया लेकिन उन्होंने सभी के आग्रह को विनय-पूर्वक मना कर दिया।
विमला और सुरेश प्रतिदिन शिव मंदिर तो जाते ही थे। अब वे हर रविवार को दोनो बच्चों को लेकर विवेकानंद आश्रम , गायत्री मंदिर , साई मंदिर भी जाने लगे। सावन लगते ही महादेव घाट में शिव भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी थी। ग्राहकों की आवक के चलते अब सुरेश ने मोहल्ले के ही एक युवक को नौकरी पर रख लिया , उसका नाम बुधारु था। कहने को तो उसने बुधारु को एक माह के लिए रखा था लेकिन वह नियमित जैसा हो गया। सावन के बाद भी ग्राहकों की भीड़ बनी रही। असल में नदी के पार अमलेश्वर व आसपास के गाँवो में कालोनियाँ बनने लगी थी, जिसके चलते इस सड़क में आवाजाही बढ़ गई।
एक समय था जब दिन ढलते ही यहाँ से गुज़रने वाले इक्का दुक्का होते थे, अब इस सड़क में देर रात तक रौनक़ रहती।
अमर को पास के ही एक अंग्रेज़ी माध्यम वाले स्कूल में दाख़िला करा दिया गया । अमर शुरू शुरू में दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाने के नाम पर रोता लेकिन फिर उसकी आदत हो गई। वह स्कूल में भी चुपचाप ही रहता। आख़री सावन सोमवार को जब विमला और सुरेश दोनो बच्चों के साथ मंदिर से जल्दी जल्दी पूजा कर घर लौट रहे थे । आज मंदिर में कुछ ज़्यादा ही भीड़ थी । और भीड़ की वजह से उन्हें दुकान खोलने में विलम्ब हो रहा था। इसलिए वे तेज़ी से चल रहे थे, अभी वे घर के पास पहुँचे ही थे कि अचानक अघोरी बाबा आ गए।
अघोरी बाबा को देख अमर अपनी माँ के आँचल के पीछे छुपने लगा तो विजय किलकारी मारने लगा। बाबा को जब विमला और सुरेश ने दण्डवत प्रणाम किया तो उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा जल्द ही लक्ष्मी आकर तुम्हारे घर को ख़ुशियों से भर देगी।
यह कहकर बाबा तेज़ क़दमों से मंदिर की ओर चले गए। विमला और सुरेश एक दूसरे को देख मुस्कुराने लगे। अभी वे घर के भीतर भी नहीं गए थे कि पंडित पांडे जी आ गए। दोनो ने पंडित को प्रणाम किया फिर पंडित के साथ ही घर के भीतर आ गए।
पंडित जी को बिठाकर विमला किचन में चली गई तो सुरेश ने अमर के व्यवहार की चर्चा छेड़ दी। इस पर पंडित जी ने कहा सब ठीक हो जाएगा। ईश्वर पर भरोसा रखो। इस बारे में अघोरी बाबा ही कुछ बता सकते हैं।
इसके बाद पंडित जी चाय पीकर जाने लगे तो विमला ने अमर के मुंडन संस्कार का शुभ मुहूर्त देखने की जिद की । पंडित जी ने कहा कि अमर का मुंडन संस्कार पाँचवे वर्ष में करना उचित होगा अभी डेढ़ साल और इंतज़ार करें।
डेढ़ साल हँसी ख़ुशी में कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। विजय अब चलने और बोलने भी लगा था। इस बीच विमला ने सुहासिनी को जन्म दिया। सुहासिनी के जन्म के बाद तो उनका पुश्तैनी व्यापार और भी चमकने लगा था ।
अब वे अमर का मुंडन कराने की सोच ही रहे थे, कि एक दिन अचानक अघोरी बाबा आ गये। अघोरी बाबा की आवाज़ सुन विमला दौड़ते हुए दरवाज़े तक आई , तो बाबा ने कहा भोजन नहीं कराओगी । इस पर विमला उन्हें घर के भीतर ले गई। और आनन-फ़ानन में भोजन की तैयारी कर बाबा को बिठा दिया। बाबा भोजन करने लगे , विमला और सुरेश उन्हें श्रद्धापूर्वक भोजन खिला रहे थे, बाबा उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे, दोनो की चिंता बढ़ने लगी थी। तभी सुहासिनी के रोने की आवाज़ सुन विमला उसे गोद में उठा लाई । और सुहासिनी को गोद में लिये हुए जैसे ही भोजन परोसा , बाबा ने कहा बस अन्नपूर्णा पेट भर गया। तुम्हारा पुत्र कहाँ है दिखाई नहीं दे रहा है?
बाबा के इस सवाल पर विमला को पंडित पांडे जी की बात याद आ गई, उसने स्कूल जाने की बात कहकर अपने मन की शंका उजागर कर दी। और अमर के व्यवहार को लेकर सभी बातें बता दी। बाबा ने हवा में हाथ ऊपर उठाकर कुछ बुदबुदाया फिर मुट्ठी बंद कर दी। थोड़ी देर मुट्ठी बंद रखने के बाद विमला के आगे हाथ खोलते हुए कहा इसे पहना देना, लेकिन पहले उसका मुंडन संस्कार कर आओ। जाओ भोरमदेव में मुंडन संस्कार करना, इतना कहकर अघोरी बाबा चले गए।
दूसरे दिन पंडित जी ने देव पंचांग देखकर तिथि बता दिया। एक माह बाद की तिथि निर्धारित किया गया साथ ही यह भी तय किया गया कि पंडित जी और नाई यहीं से साथ ले जाएँगे।
अघोरी बाबा द्वारा अमर के लिए दिए रुद्राक्ष को पूजा स्थल में रख दिया गया।
इस बीच एक और अप्रत्याशित घटना हुई । अमर एक दिन घर से खेलने निकला और चुपचाप जाकर महादेव घाट में बैठ गया। ख़ारुन नदी के तट पर स्थित महादेव घाट के सौंद्रयीकरण का काम चल रहा था।
इधर घर में अमर को नहींदेख उसकी खोजबीन शुरू हुई। मोहल्ले के बच्चों ने भी अमर को नहीं देखने की बात कही। बेहाल विमला और सुरेश सुध-बुध खोकर बदहवास ढूँढने निकले। अमर की ढूँढते चार छः घंटे बीत चुके थे।
सूर्यनारायण अस्त होने लगा था। परछाईं बढ़ते-बढ़ते अंधेरे का रूप लेने लगी थी । वे अभी पुलिस में रिपोर्ट लिखाने की सोच ही रहे थे , तभी किसी ने आकर बताया कि अमर महादेव घाट में बैठा है, वे उसी हालत में घाट की ओर दौड़े, साथ में मोहल्ले के और लोग भी थे।
महादेव घाट में एक-एक कोना ढूँढा गया लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल रहा था, रोते चीख़ते विमला का बुरा हाल था , गोद में सुहासिनी भी अपनी माँ को रोते देख रोने लगी थी। वातावरण करुण हो गया था ।विमला दहाड़ मार कर रोए जा रही थी , उसे संभालना मुश्किल हो रहा था। हालत तो सुरेश की भी ख़राब हो रही थी, लेकिन वह स्वयं को किसी तरह संभाले हुए था। वे यहाँ से सीधे पुलिस स्टेशन जाने निकल ही रहे थे कि अमर के घर पहुँचने की सूचना आ गई।
वे सब सीधे घर पहुँचे। अमर चुपचाप बैठा था। उसे देखते ही अब तक अमर के लिए तड़फ रही विमला को ग़ुस्सा आ गया, और वह अमर को बग़ैर बताए जाने और सब को परेशान करने की बात कहते हुए मारने लगी। उसे किसी तरह छुड़ाया तो वह किनारे में बैठकर रोने लगी।
अमर के इस तरह के व्यवहार की अब मोहल्ले में चर्चा होने लगी थी। लेकिन इन सब से अनजान वह चुपचाप अपने में मगन रहता, ऐसा भी नहीं है कि उसे लेकर विमला और सुरेश को चिंता नहीं थी , वे डॉक्टर के पास ले जाने की भी सोचते लेकिन फिर यह सोचकर चुप रह जाते कि मुंडन संस्कार के बाद अघोरी बाबा द्वारा दिए रुद्राक्ष को पहनने के बाद अमर ठीक हो जाएगा।
गर्मी का महीना बीत चुका था। वर्षा के फुहार से महादेव घाट में पानी चढ़ने लगा था। नदी के बढ़ते जल स्तर को देखने की लिए आवाजाही बढ़ गई थी। ऐसे समय में सुरेश की दुकानदारी में विमला भी हाथ बाँटती थी। नदी का जल स्तर देखने वाले लोग मंदिरो का भी दर्शन करते थे। कई लोग पिकनिक मनाने आते थे। इस बीच विजय के गोद लेने की सारी औपचारिकताएँ पूरी हो गई , और क़ानूनी रूप से विजय अब विमला और सुरेश का पुत्र हो गया था। वहीं कुछ समाजसेवी संस्थाओं ने विजय की परवरिश में मदद का आग्रह किया लेकिन उन्होंने सभी के आग्रह को विनय-पूर्वक मना कर दिया।
विमला और सुरेश प्रतिदिन शिव मंदिर तो जाते ही थे। अब वे हर रविवार को दोनो बच्चों को लेकर विवेकानंद आश्रम , गायत्री मंदिर , साई मंदिर भी जाने लगे। सावन लगते ही महादेव घाट में शिव भक्तों की भीड़ बढ़ने लगी थी। ग्राहकों की आवक के चलते अब सुरेश ने मोहल्ले के ही एक युवक को नौकरी पर रख लिया , उसका नाम बुधारु था। कहने को तो उसने बुधारु को एक माह के लिए रखा था लेकिन वह नियमित जैसा हो गया। सावन के बाद भी ग्राहकों की भीड़ बनी रही। असल में नदी के पार अमलेश्वर व आसपास के गाँवो में कालोनियाँ बनने लगी थी, जिसके चलते इस सड़क में आवाजाही बढ़ गई।
एक समय था जब दिन ढलते ही यहाँ से गुज़रने वाले इक्का दुक्का होते थे, अब इस सड़क में देर रात तक रौनक़ रहती।
अमर को पास के ही एक अंग्रेज़ी माध्यम वाले स्कूल में दाख़िला करा दिया गया । अमर शुरू शुरू में दूसरे बच्चों की तरह स्कूल जाने के नाम पर रोता लेकिन फिर उसकी आदत हो गई। वह स्कूल में भी चुपचाप ही रहता। आख़री सावन सोमवार को जब विमला और सुरेश दोनो बच्चों के साथ मंदिर से जल्दी जल्दी पूजा कर घर लौट रहे थे । आज मंदिर में कुछ ज़्यादा ही भीड़ थी । और भीड़ की वजह से उन्हें दुकान खोलने में विलम्ब हो रहा था। इसलिए वे तेज़ी से चल रहे थे, अभी वे घर के पास पहुँचे ही थे कि अचानक अघोरी बाबा आ गए।
अघोरी बाबा को देख अमर अपनी माँ के आँचल के पीछे छुपने लगा तो विजय किलकारी मारने लगा। बाबा को जब विमला और सुरेश ने दण्डवत प्रणाम किया तो उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा जल्द ही लक्ष्मी आकर तुम्हारे घर को ख़ुशियों से भर देगी।
यह कहकर बाबा तेज़ क़दमों से मंदिर की ओर चले गए। विमला और सुरेश एक दूसरे को देख मुस्कुराने लगे। अभी वे घर के भीतर भी नहीं गए थे कि पंडित पांडे जी आ गए। दोनो ने पंडित को प्रणाम किया फिर पंडित के साथ ही घर के भीतर आ गए।
पंडित जी को बिठाकर विमला किचन में चली गई तो सुरेश ने अमर के व्यवहार की चर्चा छेड़ दी। इस पर पंडित जी ने कहा सब ठीक हो जाएगा। ईश्वर पर भरोसा रखो। इस बारे में अघोरी बाबा ही कुछ बता सकते हैं।
इसके बाद पंडित जी चाय पीकर जाने लगे तो विमला ने अमर के मुंडन संस्कार का शुभ मुहूर्त देखने की जिद की । पंडित जी ने कहा कि अमर का मुंडन संस्कार पाँचवे वर्ष में करना उचित होगा अभी डेढ़ साल और इंतज़ार करें।
डेढ़ साल हँसी ख़ुशी में कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। विजय अब चलने और बोलने भी लगा था। इस बीच विमला ने सुहासिनी को जन्म दिया। सुहासिनी के जन्म के बाद तो उनका पुश्तैनी व्यापार और भी चमकने लगा था ।
अब वे अमर का मुंडन कराने की सोच ही रहे थे, कि एक दिन अचानक अघोरी बाबा आ गये। अघोरी बाबा की आवाज़ सुन विमला दौड़ते हुए दरवाज़े तक आई , तो बाबा ने कहा भोजन नहीं कराओगी । इस पर विमला उन्हें घर के भीतर ले गई। और आनन-फ़ानन में भोजन की तैयारी कर बाबा को बिठा दिया। बाबा भोजन करने लगे , विमला और सुरेश उन्हें श्रद्धापूर्वक भोजन खिला रहे थे, बाबा उठने का नाम ही नहीं ले रहे थे, दोनो की चिंता बढ़ने लगी थी। तभी सुहासिनी के रोने की आवाज़ सुन विमला उसे गोद में उठा लाई । और सुहासिनी को गोद में लिये हुए जैसे ही भोजन परोसा , बाबा ने कहा बस अन्नपूर्णा पेट भर गया। तुम्हारा पुत्र कहाँ है दिखाई नहीं दे रहा है?
बाबा के इस सवाल पर विमला को पंडित पांडे जी की बात याद आ गई, उसने स्कूल जाने की बात कहकर अपने मन की शंका उजागर कर दी। और अमर के व्यवहार को लेकर सभी बातें बता दी। बाबा ने हवा में हाथ ऊपर उठाकर कुछ बुदबुदाया फिर मुट्ठी बंद कर दी। थोड़ी देर मुट्ठी बंद रखने के बाद विमला के आगे हाथ खोलते हुए कहा इसे पहना देना, लेकिन पहले उसका मुंडन संस्कार कर आओ। जाओ भोरमदेव में मुंडन संस्कार करना, इतना कहकर अघोरी बाबा चले गए।
दूसरे दिन पंडित जी ने देव पंचांग देखकर तिथि बता दिया। एक माह बाद की तिथि निर्धारित किया गया साथ ही यह भी तय किया गया कि पंडित जी और नाई यहीं से साथ ले जाएँगे।
अघोरी बाबा द्वारा अमर के लिए दिए रुद्राक्ष को पूजा स्थल में रख दिया गया।
इस बीच एक और अप्रत्याशित घटना हुई । अमर एक दिन घर से खेलने निकला और चुपचाप जाकर महादेव घाट में बैठ गया। ख़ारुन नदी के तट पर स्थित महादेव घाट के सौंद्रयीकरण का काम चल रहा था।
इधर घर में अमर को नहींदेख उसकी खोजबीन शुरू हुई। मोहल्ले के बच्चों ने भी अमर को नहीं देखने की बात कही। बेहाल विमला और सुरेश सुध-बुध खोकर बदहवास ढूँढने निकले। अमर की ढूँढते चार छः घंटे बीत चुके थे।
सूर्यनारायण अस्त होने लगा था। परछाईं बढ़ते-बढ़ते अंधेरे का रूप लेने लगी थी । वे अभी पुलिस में रिपोर्ट लिखाने की सोच ही रहे थे , तभी किसी ने आकर बताया कि अमर महादेव घाट में बैठा है, वे उसी हालत में घाट की ओर दौड़े, साथ में मोहल्ले के और लोग भी थे।
महादेव घाट में एक-एक कोना ढूँढा गया लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल रहा था, रोते चीख़ते विमला का बुरा हाल था , गोद में सुहासिनी भी अपनी माँ को रोते देख रोने लगी थी। वातावरण करुण हो गया था ।विमला दहाड़ मार कर रोए जा रही थी , उसे संभालना मुश्किल हो रहा था। हालत तो सुरेश की भी ख़राब हो रही थी, लेकिन वह स्वयं को किसी तरह संभाले हुए था। वे यहाँ से सीधे पुलिस स्टेशन जाने निकल ही रहे थे कि अमर के घर पहुँचने की सूचना आ गई।
वे सब सीधे घर पहुँचे। अमर चुपचाप बैठा था। उसे देखते ही अब तक अमर के लिए तड़फ रही विमला को ग़ुस्सा आ गया, और वह अमर को बग़ैर बताए जाने और सब को परेशान करने की बात कहते हुए मारने लगी। उसे किसी तरह छुड़ाया तो वह किनारे में बैठकर रोने लगी।
अमर के इस तरह के व्यवहार की अब मोहल्ले में चर्चा होने लगी थी। लेकिन इन सब से अनजान वह चुपचाप अपने में मगन रहता, ऐसा भी नहीं है कि उसे लेकर विमला और सुरेश को चिंता नहीं थी , वे डॉक्टर के पास ले जाने की भी सोचते लेकिन फिर यह सोचकर चुप रह जाते कि मुंडन संस्कार के बाद अघोरी बाबा द्वारा दिए रुद्राक्ष को पहनने के बाद अमर ठीक हो जाएगा।
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