कौशल-जीवन -४


4खारुन में एनिकट में डूब मरने की घटना आये दिन होने लगी थी, लेकिन बच्चे कहाँ मानने वाले थे। वे प्रायः हर रविवार को नदी में नहाने चले ही जाते थे। थोड़ी भी देर होती तो विमला की चिंता बढ़ जाती, और सुरेश को विमला के जिद के चलते उन्हें लाने जाना हाई पड़ता ।ऐसे ही एक दिन अमर और विजय के देर हो जाने पर सुरेश उन्हें लेने नदी तट पर पहुँचा तो यह देखकर हैरान रह गया कि विजय एक पेड़ के नीचे खड़ा किसी से बात कर रहा है, सुरेश को लाख चेष्टा के बाद भी कोई और दिखाई नहीं दिया तो वह थोड़ी नज़दीक पहुँच गया। तब भी कोई नहीं दिख रहा था , हाँ विजय की आवाज़ सुनाई दे रही थी लेकिन आवाज़ स्पष्ट नहीं था।सुरेश डर गया, और विजय को ज़ोर से आवाज़ दी तो वह चुपचाप चला आया। सुरेश ने जब उससे पूछा कि वह किससे बात कर रहा था तो उसने कोई उत्तर नहीं दिया। हालाँकि सुरेश ने इसके पहले भी उसे उस पीपल के पेड़ के नीचे देखा था लेकिन कभी उसने इस ओर ध्यान नहीं दिया था।अमर अब भी नदी में तैर रहा था। सुरेश ने आवाज़ दी तो वह नदी से तुरंत बाहर आ गया और जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगा। इसके बाद तीनो घर आ गए । रास्ते भर सुरेश के ज़ेहन में विजय की हरकत रही और वह अनजाने आशंका से चिंतित होने लगा। घर पहुँचते ही बच्चे भीतर जाने लगे तो सुरेश ने अमर को आवाज़ दी । रुका तो विजय भी था लेकिन उसे भीतर जाने कहकर सुरेश ने अमर को एक किनारे ले जा कर विजय की हरकत बताते हुए जब सवाल किया तो अमर का उत्तर सुन सुरेश के होश फ़ाख्ता हो गए। अमर ने बताया कि विजय तो सालों से पेड़-पौधों , पशु-पक्षियों से बातें करता है । पूछने पर कुछ बताने की बजाय हँसी में टाल देता है या कह देता है मैं उनकी भाषा समझने की कोशिश कर रहा हूँ । मैंने विजय से कई बार कहा कि मैं यह बात घर में बताऊँगा कहता तो वह नाराज़ होकर कभी बात नहीं करने की धमकी देता था , इसलिए यह बात कभी बताई नहीं।सुरेश भूत-प्रेत, जादू-टोंने का क़िस्सा बचपने से सुनता रहा है । टोंनही-परेतीन का भी सैकड़ों क़िस्से सुन चुका था। लेकिन वह इस पर ज़्यादा विश्वास नहीं करता था। उसने सुन रखा था की पीपल और बेर के पेड़ में परेतीन रहती है, परंतु उसने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया था, लेकिन विजय की हरकत से वह अज्ञात आशंका से घिर चुका था ।उसने इसकी चर्चा जब विमला से की तो वह बुरी तरह से न केवल डर गई बल्कि चिंतित हो उठी । और शीघ्र ही झाड़-फूँक करने वाले को बुलाने की बात करने लगी । विमला ने तो दो चार बैगाओ का पता तक बता दिया लेकिन सुरेश ने यह कहते हुए साफ़ मना कर दिया कि जब वे लोग किसी का अहित नहीं करते तो उनका भी अहित कोई नहीं करेगा । रात गई, बात गई की तर्ज़ पर विजय की हरकत को नज़र अन्दाज़ कर दिया गया हालाँकि विजय की एक एक गतिविधियों पर विमला पैनी निगाह रखने लगी । इतना ही नहीं वह ईश्वर से प्रार्थना भी करती कि सब ठीक ठाक हो।स्कूल से लौटने के बाद अक्सर दोनो भाई थोड़ी देर के लिए खेलने कूदने निकल जाते थे, जबकि सुहासिनी घर में ही होती और अपनी माँ के साथ घर के काम में हाथ बँटाती।दोनो भाइयों को दुकान में आने की मनाही थी। तो खेलने कूदने का भी समय तय था। दिन ढलते ही उन्हें हर हाल में घर में आना ही होता था।लेकिन एक दिन विजय तो आ गया लेकिन अमर को आने में देर हो गई । विमला ने उस दिन अमर को ख़ूब डाँटा था। अमर ने देर से आने की वजह बतानी चाही लेकिन विमला इतने ग़ुस्से में थी कि वह अमर की कोई भी बात सुनने को राज़ी नहीं हुई । बल्कि अमर की पिटाई तक कर दी।दरअसल अमर उस दिन गणित का एक सवाल समझने पास ही में रहने वाले एक टीचर के घर चला गया था। और पढ़ाई में इतना खो गया कि उसे समय का ध्यान ही नहीं रहा।यह बात जब विजय और सुहासिनी के ज़रिये विमला को पता चला तो वह बेहद दुखी हुई , लेकिन उसने अमर से कुछ नहीं कहा। वह कहती भी कैसे? उसने अमर से बग़ैर कारण पूछे पिटाई कर दी थी।व्यथित विमला ने यह बात सुरेश को बताकर अपने दिल का बोझ हल्का करने की कोशिश ज़रूर की लेकिन वह इससे उबर नहीं पा रही थी।इस घटना के बाद वह जब भी अमर की ओर देखती अपने किए पर पछताती। लेकिन अमर को तो यह सब याद ही नहीं था। उसका व्यवहार पूर्ववत रहा।

समय की रेत पर कौन सी घटना कब उभर कर सामने आ जाती है , कोई नहीं जानता। जीवन की आपाधापी में बड़ी सी बड़ी घटना खो जाती है और छोटी छोटी बात का बतंगड़ बन जाता है।

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