कौशल-जीवन -५
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बात का बतंगड़ तो उस दिन हुआ जब अमर ने आगे पढ़ाई जारी रखने से मना करने लगा। विमला और सुरेश उसे समझा रहे थे कि आज के दौर में पढ़ना लिखना कितना ज़रूरी है , लेकिन अमर इस ज़िद पर अड़ा था कि पढ़ने लिखने का क्या फ़ायदा जब आगे जाकर अपना बिज़नेस ही संभालना है । लेकिन विमला के वात्सल्य के सामने झुकना पड़ा और वह इस शर्त पर पढ़ाई जारी रखने को तैयार हो गया कि वह शाम के बाद बिज़नेस संभालेगा।
कालेज के पहले दिन जब उसकी जमकर रैकिंग हुई तो वह घर आकर फिर ज़िद करने लगा लेकिन दूसरे दिन अमर के साथ सुरेश भी कालेज गया और प्रिन्सिपल से मिलकर अमर के साथ हुई रैकिंग पर चर्चा की। रैकिंग लेने वाले छात्रों से माफ़ी मँगवाई गई। इसके बाद तो अमर की रुचि धीरे-धीरे फिर पढ़ाई की तरफ़ लगने लगा और वह शाम को दुकान जाने की बजाय दोस्तों के साथ घूमने चला जाता था। लेकिन घर के सख़्त नियमो के चलते आठ-नौ बजे तक लौट आता था।
एक दिन अमर ने बताया कि वह दोस्तों के साथ नंदनवन जा रहा है, क्योंकि आज कालेज की छुट्टी है। थोड़ा ना-नुकूर के बाद विमला की समझाईश पर सुरेश इस शर्त पर राज़ी हो गया कि वह दिन डूबने से पहले शाम तक घर लौट आएगा।
जनवरी का महीना वैसे भी गुलाबी मौसम के रूप में चर्चित है और घूमने-फिरने के हिसाब से भी अच्छा माना जाता है, अमर अपने तीन दोस्तोंके साथ जाने निकला तो विमला ने उसे उसकी माँग से अधिक पैसे देते हुए समय का ध्यान रखने , ज़्यादा मस्ती नहीं करने की समझाईश दी।
दो बाईक में अमर, दिनेश, राजेश और संजय रवाना हुए । रास्ते में इन चारों ने तिवरा और चना बुट तोड़ने के चक्कर में रखवाली करने वाले से पिटते बचे । इस उम्र में यह सब सामान्य सी बातें हैं। वे नंदनवन में टिकिट कटाकर भीतर गए और फिर सबसे पहले मोटर बोट का आनंद लिया। इसके बाद वे आपस में ही हँसी मज़ाक़ करते शेर भालू व अन्य जानवरों को देखा फिर थककर एक जगह बैठ कर गेट के बाहर से ख़रीदे फल्ली दाना खाने लगे। तभी एक बाल उनके बीच आकर ठीक उस जगह पर गिरते हुए निकल गया जिस जगह पर पेपर बिछाकर वे लोग फल्ली खा रहे थे , बाल के गिरने से फल्ली दाना बिखर गया।
इस घटना से चारों को बेहद ग़ुस्सा आया और वे इसे जानबूझकर की गई हरकत समझ कर बाल लेने आ रहे युवक से उलझ गए इतने में बाल लेने वाले लड़के के पीछे आ रही एक लड़की भी इन चारों से उलझ गई । लड़की के सामने आते हो चारों चुप तो हो गए। लेकिन उनका मूड उखड़ चुका था।
वे वापस चलने की सोच रहे थे लेकिन वह अभी भी लड़की से भिड़ने आतुर था लेकिन बाक़ी तीनो ने संजय को बड़ी मुश्किल से समझाया । संजय अब भी उस लड़की के कारण रोक देने से नाराज़ था और दिनेश के यह बताने पर कि वह पुरानी-बस्ती में रहती है , तो उसने दिनेश से कहा-दिखाना तो उसका घर ? बहुत होशियार बन रही थी उसको उधर ही देखते हैं।
उसके बाद चारों गेट के बाहर एक छपरे नुमा होटल में नाश्ता कर लौटने लगे , चारों ने रास्ते भर मस्ती की , खेतों से तिवरा-चना भी खाए।
शाम को घर पहुँचने के बाद अमर ख़ुश हो हो कर सबको बताता रहा , उसने जब बाल वाली घटना का ज़िक्र किया और संजय के गुस्साने की बात बताई तो विमला बहुत नाराज़ हुई और ग़ुस्से में यहाँ तक कह दिया कि आइन्दा ऐसे लोगों के साथ जाने की ज़रूरत नहीं है।
इस घटना के कुछ दिन बाद संजय घर आया तो विमला ने उसे ख़ूब खरी खोटी सुनाई । बाद में संजय ने अमर की खिंचाई करते हुए कहा था, कि हर छोटी सी छोटी बात को घर में बताने की क्या ज़रूरत है।चूँकि संजय से उसका परिचय स्कूल के दिनो से था इसलिए उसने संजय से कह दिया कि अब वह ऐसी ग़लती नहीं करेगा।
इसके बाद अमर परीक्षा की तैयारी में जुट गया, विजय और सुहासिनी भी।
सब साथ ही पढ़ते थे । परिमाण आया तो सभी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो चुके थे । इस ख़ुशी में जब घर में सत्यनारायण कथा रखने की बात हुई तो अमर ने कहा हर बार यही होता है । भले ही दिन में कथा रख लो लेकिन इस बार रात में होटल में खाना खाएँगे । अमर के इस प्रस्ताव पर विमला नाराज़ हुई लेकिन सुरेश ने यह कहते हुए मामला शांत करा दिया कि बच्चों की इच्छा भी देखनी चाहिये।
सत्यनारायण कथा के बाद सभी शाम को तैयार हो गए और होटल गिरनार पहुँच गए । जयस्तंभ के बिलकुल भीड़-भाड़ इलाक़े में तब खाना खाना प्रतिष्ठा का विषय होता था, वैसे भी इस शहर में ज़्यादा कुछ था क्या? महिलाओं में चिकनी मंदिर के पास का अलका रेस्टोरेंट भी दोसा के लिए चर्चित था , गोलबाजार ख़रीददारी करने आने वाली महिलाएँ यहाँ प्रायः आती थी । सुरेश ने अपनी शादी के बाद विमला को पहली दफ़ा फ़िल्म दिखाने के बाद खाना खिलाने गिरनार ही लाया था। तब के बाद विमला आज दूसरी बार यहाँ आइ थी।
रात साढ़े आठ बजे सभी होटल पहुँच गए और फिर तय हुआ कि थाली मँगाई जाएगी। विमला ने खाते हुए कहा था, इतने साल बाद आई हूँ लेकिन कुछ भी नहीं बदला है। सुरेश ने उसकी ओर देखते हुए हाथो की उँगलियाँ घुमाई तो वह पुरानी यादों में खो गई, कि जब वे पहली बार यहाँ आए थे तो लोग उन्हें किस तरह से घूर रहे थे, उनकी वेषभूसा भी ग्रामीण परिवेश की थी , और वे लोग जब हाथ से खाना खा रहे थे तो बाज़ू में बैठी महिलाओ ने किस तरह से कानाफूसी कर हँसी थी। उसके बाद लौटते हुए रास्ते भर विमला ने सुरेश को ऐसे किसी होटल में कभी लेकर नहीं जाने की बात तक कह डाली थी। लेकिन आज जब इतने सालों के बाद वे यहाँ आये थे तो पुरानी यादों का ज़िक्र कर ख़ुश हो रहे थे, बच्चों ने भी उन बातों का ख़ूब आनंद लिया।
रात को घर लौटे तो सब बेहद ख़ुश थे, लेकिन घर पहुँचते ही विजय ने जब कहा कि उसे भूख लगी है तो सभी हैरान रह गए। सुरेश ने कहा भी अब चुपचाप दूध पीकर सो जाओ तो विजय किसी आज्ञाकारी बालक की तरह हामी भर दी। लेकिन विमला सोच में पड़ गई , उसने अकेले में सुरेश से कहा भी कि क्या विजय को भूख लगना अजीब बात नहीं है, जबकि उसने भी तो पूरी थाली खाई थी । सुरेश ने कहा भी कि कई बार बच्चों को अन्दाज़ा नहीं होता और वे ऐसी हरकत कर देते हैं और नासमझी में भूख लगने की बात कह देते हैं। लेकिन विमला संतुष्ट नहीं हो पाई।
बच्चे सब अपने कमरों में सोने चले गए , सुरेश भी नींद के आग़ोश में चला गया लेकिन विमला को चैन नहीं था और न चाहते हुए भी उसका ध्यान विजय की तरफ़ चला जाता था। वह यह बात जानती थी कि ख़ाली पेट सोना कठिन काम है इसीलिए वह उठी और विजय को देखने चली गई । वह सोच रही थी विजय सोया है या नहीं।
यही तो माँ की ममता है, जो छोटी छोटी बातों से बेचैन हो जाती है , उसने विजय के कमरे के दरवाज़े को थोड़ा सा धक्का दिया ताकि विजय को पता न चले , लेकिन दरवाज़े के पल्ले को थोड़ा खोलने पर विजय बिस्तर में नहीं दिखा तो वह दरवाज़े को पूरा खोलते हुए भीतर चली गई लेकिन ये क्या वह कमरे में भी नहीं था। अभी वह तेज़ी से लौट ही रही थी कि विजय दरवाज़े से भीतर दाख़िल हुआ और माँ को कमरे में देखते ही चौंकते हुए कहा कुछ काम था?
लेकिन विमला प्रतिप्रश्न किया कहाँ गया था, भूख लगी है कह रहा था , कुछ खाना है क्या?
विजय के इंकार के बाद भी कुछ खा लेने को कहते रही लेकिन जब उसने साफ़ मना कर दिया तब वह कुछ आश्वस्त हुई। लेकिन अब विमला के मन में विजय जे कमरे से बाहर रहने की नई चिंता ने घेर लिया । उसने हाल में टँगी दीवाल घड़ी पर नज़र डाली तो डेढ़ बज रहे थे, वह विजय के प्रति आश्वस्त नहीं हो पा रही थी। और वापस कमरे में आकर सोने की कोशिश करते रही ।
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