कौशल-जीवन -९

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और विजय !
विजय ने बता दिया था कि वह ईतवार को रायपुर पहुँच जाएगा। और इस बार वह हमेशा के लिए आ रहा है। उसका कमरा तैयार कर दे। एयर कंडीशनर भी लगवा देने का फ़रमाइश भी कर दिया था ।
विजय के आने की ख़बर से सभी ख़ुश थे और उसके मुताबिक़ उसका कमरा तैयार किया जाने लगा। कमरे को सजाने की ज़िम्मेदारी सुहासिनी ने ले ली , विजय के पसंद का रंग दीवालों में लगाया गया । और विजय को लेने पूरा परिवार एयरपोर्ट जाने का भी कार्यक्रम तय हो गया।
तय वक़्त से पहले वे एयरपोर्ट के लिये रवाना हुए , नाश्ता फूँडहर चौक में करने का कार्यक्रम था , वहाँ साहू होटल के समिसा-चना शहर में चर्चित था, कई लोग तो शहर से सिर्फ़ समोसा खाने जाते थे , इससे पहले फूल चौक से बुके और हार ले लिया गया था। पुराना बस स्टैंड के पास के मधु स्वीट से काजू कतली और दूसरी मिठाइयाँ ले ली गई थी।
जैसे जैसे फ़्लाइट के आने का समय नज़दीक आ रहा था वैसे वैसे चेहरों में ख़ुशियाँ चमकने लगी। आकाश में जैसे ही प्लेन दिखा तो सुहासिनी चिहंक उठी थी, वो देखो! उसकी चीख़ पर जब सब उसकी ओर देखने लगे तो वह झेप गई।
इंतज़ार की घड़ियाँ समाप्त हो चुकी थी । विजय कभी भी सामने आ सकता था, सभी की निगाह दरवाज़े पर जमी थी। और जैसे ही विजय दरवाज़े के पार आया , सभी उसकी ओर लपके। अमर ने बुके दिया तो सुहासिनी पैर छूने झुक गई विजय भी विमला और सुरेश और अमर का पैर छूकर आशीर्वाद लिया। विशाखा चुपचाप खड़ी सब देख रही थी । परिवार की इस ख़ुशी को देख कर उसे भी यह सब अच्छा लग रहा था तभी अमर का ध्यान उसकी ओर गया तो उसने विजय का हाथ पकड़कर खिंचते हुए विशाखा के सामने खड़ा करते हुए परिचय कराया। तभी अचानक विजय ने पास ही खड़ी एक विदेशी युवती से परिचय कराते हुए कहा - इनसे मिलिए , ये है एलिज़ाबेथ ।और यह भी हमारे साथ ही रहेगी । हम साथ ही काम करते रहे है और यह मेरी सहयोगी है।
अब सबका ध्यान एलिजाबेथ की तरफ़ चला गया था , तभी सुहासिनी ने विजय की तरफ़ देखते हुए एक आँख दबाते हुए पूछ लिया सिर्फ़ सहयोगी या ? जवाब के लिए उसने आगे के शब्द नहीं बोले । फिर सभी हँसते हुए कार में आ बैठे।
घर पहुँचते ही विजय का एक बार फिर स्वागत हुआ । उसे दरवाज़े पर रोककर सहासिनी जल्दी से घर के भीतर से ताम्बे के लोटे में पानी भर लाई तो विशाखा आरती की थाली । पहले दरवाज़े में पानी उड़ेला गया फिर विजय की आरती उतारी गई। इस दौरान बड़े ही कौतुहल से एलिज़ाबेथ कैमरे से तस्वीर लेती रही। मोहल्ले के आसपास के लोग भी जमा हो गए थे । कुछ लोग तो साथ साथ घर के भीतर भी आ गए थे तो कुछ विदेशी मेम देख चर्चा भी कर रहे थे।
आँगन को रंगोली से सजाया गया था , एलिज़ाबेथ रंगोली को भी कैमरे में क़ैद करते हुए इसे बनाने वाले का नाम पूछा और विशाखा के नाम आते ही वह उससे हाथ मिलाते हुए गले लग गई।
इधर विजय के आने की ख़बर मोहल्ले में आग की तरह फैल चुकी थी । और कुछ आग लगाने वाले लोग एलिज़ाबेथ को लेकर चटकारे ले रहे थे। तो कुछ विजय की वेशभूषा पर भी कटाक्ष कर रहे थे। 
विजय की वेशभूषा कुछ अलग थी , सिर के बाल कंधे तक आ रहा था तो दाढ़ी मूँछ भी बढ़ी हुई थी। गले में अलग अलग तरह की माला थी तो सीधे हाथ की कलाई में रुद्राक्ष की माला लपेटा हुआ था।
चर्चा करने वालों का क्या ? जितनी मुँह , उतनी बातें ! कोई कह रहा था कि विजय विदेशी मेम लेकर आ गया तो कोई यह भी कहने से नहीं चूक रहा था कि इस घर में धरम -करम ही नहीं रहा, तीनो बच्चे पता नहीं कैसे संस्कार के निकले की दूसरी जातियों से शादी किए। केवल पैसे कमाने में ध्यान रहा , बच्चों को कुछ नहीं सिखाया।
इधर सुरेश चिंतित था।और मन ही मन विजय पर उसे ग़ुस्सा आ रहा था कि विजय ने आने से पहले ये सब बताने की ज़रूरत भी नही समझा । ऊपर से वेशभूषा से भी तमाशा कर दिया है । 
इधर विजय सबके लिए कुछ न कुछ लाया था। बैग से निकाल निकाल कर वह सबको देने लगा और एलिज़ाबेथ को यह सब अच्छा लग रहा था, वह हर इस पल को कैमरे में क़ैद कर रही थी। सुरेश को विजय से बातचीत की जल्दी थी इसलिए उसने विशाखा से एलिज़ाबेथ को घर दिखाने कहा और मौक़ा देखकर विजय के सामने अपनी चिंता ज़ाहिर की तो उसने साफ़ कह दिया कि वे अभी शादी नहीं किए है। दोनो एक दूसरे को बहुत चाहते हैं। और एलिज़ाबेथ तैयार होगी तो ही शादी होगी। फ़िलहाल तो वह उसी के साथ रह रही है । विजय ने उसके कुशाग्र बुद्धि से लेकर हिंदू धर्म के प्रति रुचि की बात बताता रहा और सुरेश सब कुछ अवाक् सुनता रहा, उसे नहीं सूझ रहा था कि वह क्या कहे कि क्या करें।
घर देखने के बाद एलिज़ाबेथ ने जब विजय के लिए तैयार कमरे को लेकर कुछ प्राबलम बताने लगी तो भले ही विमला -सुरेश उसका मुँह देख रहे थे लेकिन सुहासिनी और विशाखा एक दूसरे की ओर देखने लगे । 
उसकी दिक़्क़त सुन विजय उठा और अपने कमरे की ओर जाने लगा एलिज़ाबेथ आगे आगे चल रही थी तो उत्सुकतावश सभी लोग भी वहाँ पहुँचे ।
विजय ने कमरे का मुआयना करते हुए कहा , पलंग हटा देते हैं, फिर वह उसे धीमी आवाज़ में समझाता रहा। एलिज़ाबेथ भी कभी दीवारों की तरफ़ तो कभी आलमारी की तरफ़ तो कभी टँगी तस्वीर की तरफ़ हाथ से इशारा कर बोल रही थी । आवाज़ धीमी थी कि उन दोनो के अलावा कोई कुछ नहीं सुन पाया।
फिर सब बाहर आ गये तो विजय ने बताया कि वे ज़मीन में दरी-चादर बिछाकर सोते हैं इसलिए पलंग हटाना पड़ेगा। 
सुरेश का सिर चकराने लगा था। उसे लग रहा था कुछ भी ठीक नहीं हो रहा है , फिर उसने विमला को किनारे बुलाकर कहा लोग साधु बनने हिमालय जाते हैं तुम्हारा लाड़ला अमेरिका गया था। सुरेश की बात सभी ने सुन ली और सब हँसने लगे। तो हैरान एलिज़ाबेथ ने पूछ लिया कि क्या हुआ तो विजय ने जब पूरी बात बताई तो वह भी ओह नो नो कहते हँसने लगी । इसके बाद सुरेश चला गया और सुहासिनी की बेटी को गोद में लेकर विजय ने मयंक के बारे में पूछा। तो बताया गया कि वह काम के सिलसिले में कलकत्ता गया है और पाँच-सात दिन बाद लौटेगा।
सुहासिनी चाहती थी कि दोपहर में एलिज़ाबेथ उसके साथ ही आराम करे लेकिन उसने सीधे मना कर दिया। इस तरह के इंकार से सब सन्नाटे में रह गए लेकिन विजय ने बात को संभालते हुए कहा कि वह पलंग पर नहीं सोती इसलिए मना कर रही है  तब जाकर माहौल हल्का हुआ।
इधर सुहासिनी और विशाखा चर्चा में मशगूल थे तो विमला के मन में भी ढेरों सवाल थे, जबकि अमर को या समझ में ही नहीं आ रहा था कि उसे करना क्या है। 
शाम को जब सुरेश घर आया तो यह सुनकर हैरान रह गया कि अभी तक दोनो कमरे से नहीं निकले हैं, उसने विमला पर नाराज़गी दिखाते हुए कहा कि चाय बनाकर उन्हें भी बुला लो और वह ख़ुद छत पर चला गया। अभी वह भविष्य में होने वाली सम्भावित परेशानियों को सोच ही रहा था कि विमला ने नीचे से ही आवाज़ देते हुए बताया कि दोनो कमरे में नहीं हैं। सुरेश हैरान था कि छोटी सी छोटी बात पूछ कर करने वाला विजय कितना बदल गया है , बड़ा हो गया है।
इधर विशाखा और सुहासिनी की हँसी रुक ही नहीं रही थी, एलिज़ाबेथ की हर छोटी छोटी बात को याद कर वे मज़ा ले रही थी , एक बार विमला ने डाँटा भी कि क्या हेहे हेहे लगाये हो । लेकिन वे कुछ देर शांत होती और फिर किसी न किसी बात को छेड़ कर हंस पड़तीं।
शाम पूरी तरह अंधेरे में तब्दील हो चुका था , लाईटे जला दी गई और सुरेश भी चाय पीकर चला गया। विमला दोनो के लौटने का इंतज़ार कर रही थी , उसकी बेचैनी बढ़ने लगी थी , बेचैनी में ग़ुस्सा भी घुलने लगा था।
थोड़ी देर बाद जब दोनो घर आए तो विमला बड़ी मुश्किल से ख़ुद को ग़ुस्सा जताने से रोक पाई थी, लेकिन बग़ैर बताए कहाँ चले गए थे ज़रूर पुछते हुए चाय बनाने की बात कही लेकिन, विजय ने साफ़ कर दिया कि वे चाय नहीं पीते है और महादेव घाट तक जाने की बात कही। साथ ही यह भी कहा कि वे अब स्नान ध्यान करेंगे इसलिए उन्हें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा।यह कहते दोनो कमरे में चले गए। 
सुहासिनी तो जैसे एलिज़ाबेथ से बात करने मरे जा रही थी। इसलिए उसने कहा भी कि आधा घंटा तो बैठ जाओ लेकिन दोनो ने ही उसकी बात अनसुनी कर दी। विमला को भी यह बात बुरी लगी लेकिन विशाखा ने कुछ और ही क़िस्सा छेड़ कर मामले को ख़ुशनुमा बना दिया।
स्नान ध्यान के बाद विजय छत पर चला गया तो एलिज़ाबेथ नीचे ही सबके साथ आ बैठी। वे एलिज़ाबेथ के बारे में सब कुछ आज ही जान लेना चाहते थे । हर सवाल का जवाब वह बेबाक़ी से दे रही थी, वह पैसे वाले घर की लड़की है और पहले भारत आ चुकी है तभी से वह हिंदू धर्म से प्रभावित हुई और विजय से मुलाक़ात के क़िस्से बताते हुए यह भी बताया कि पिछले एक साल से वे साथ ही रह रहे हैं , भारत के प्रति आकर्षण के चलते ही उसने विजय से दोस्ती की है लेकिन अब वह विजय से प्यार करने लगी है।
जब से वे साथ रहने लगे हैं तभी से वे पूरी तरह धार्मिक हो गए है और सुबह शाम ध्यान पूजा करते हैं । सूर्यास्त के बाद वे अन्न ग्रहण नहीं करते।

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