कौशल-जीवन -७
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सुहासिनी को इस घर से गए तीन बरस हो गए थे। वह एक बच्चे की माँ बन चुकी थी। कहने को तो सुहासिनी का इस घर से कोई नाता ही नहीं बचा था लेकिन हक़ीक़त में वह अब भी इस घर से अलग नहीं हो पाई थी। और अमर भी कहाँ सुहासिनी से ।
इन सालों में विमला और सुरेश को कभी पता ही नहीं चला अमर का सुहासिनी के घर में न केवल आना जाना है बल्कि सुहासिनी के पति मयंक से भी उसके मधुर संबंध है।
ऐसा भी नहीं है कि अमर ने सुहासिनी की घर वापसी की कोशिश नहीं की। वह कोई न कोई बहाने से सुरेश या विमला के सामने उसका नाम ले देता था और सॉरी कह देता था। एक बार तो उसने विमला और सुरेश के सामने यह भी कहा की सुहासिनी बाज़ार में दिखी थी और वह अपने पति के साथ बहुत ख़ुश दिखाई दे रही थी लेकिन तब सुरेश ने उसे झिड़कते हुए साफ़ कह दिया था कि उसके बारे में कोई बात नहीं होगी, हालाँकि बाद में विमला ने अमर से अकेले में पूछताछ की तब भी अमर ने कुछ नहीं बताया था।
अमर हफ़्ते पंद्रह दिन में सुहासिनी के घर ज़रूर जाता। और जब भी वह लौटता कुछ न कुछ बहाने से विमला के सामने ज़िक्र कर देता।
ऐसे ही एक रात सुहासिनी को लेकर माँ बेटे में चर्चा चल ही रही थी कि अचानक वहाँ सुरेश आ गया। सुरेश दोनो की बात सुनकर बहुत ग़ुस्सा हुआ था।
लेकिन सच तो यह है कि सुहासिनी को लेकर उसके मन में भी अगाध प्रेम था । यही वजह है कि बाहर से कठोर दिखने के चक्कर में वह भीतर ही भीतर टूटने लगा था । उस रात भी माँबेटे पर ग़ुस्सा दिखाने के बाद वह रात भर सो नहीं पाया था। आँख से आँसू नही गिरने देने के निर्णय ने उसे भीतर ही भीतर ख़ूब रुलाया था । इन दिनो वह अक्सर रात को उठकर बैठ जाता था और विमला के जागने व पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देता था , लेकिन वह ज़ाहिर नहीं होने देता कि ये सब उस बेटी के लिए है जिसने शादी के निर्णय को बताने की भी ज़रूरत नहीं समझी।
आख़िर बाप का दिल कब तक कठोरता की खोल ओढ़े रहता । एक रात जब विमला ने यूँ ही कहा कि सुहासिनी तो माँ बन गई है तो इस बार सुरेश ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की । सुरेश की चुप्पी ने विमला की हिम्मत बढ़ा दी , उसने कहना शुरू किया , कोई संबंध जीते जी इस तरह थोड़े न ख़त्म हो जाता है, पता नहीं वह किस हाल में है ? बच्चों से ग़लती हो जाती है लेकिन उसकी सज़ा इतनी कठोर नहीं होनी चाहिये । सिर्फ़ एक बार के लिए उसे घर बुला लो फिर कभी नहीं कहूँगी। यह कहते हुए विमला रोने लगी। विमला का रोना देख सुरेश का हृदय पिघलने लगा । दिखावे की कठोरता पसीज चुका था लेकिन आँख से आँसू आने से रोकते हुए , सिर्फ़ इतना कहा - ठीक है।
आसमान पर चाँद अपने पूरे शबाब पर था , खिड़की से चाँद की रोशनी दाख़िल हो कर पूरे कमरे को अपने आग़ोश में ले लिया । विमला खिड़की को बंद करने उठी तो सुरेश ने उसे रोकते हुए कहा- इसे रोको नहीं, पूरे कमरे में आ जाने दो कितने साल बाद तो यह आ रही है। चाँद की रोशनी से नहाया हुआ कमरा एक बार फिर मुस्कुराने लगा था और ख़ुशी के मारे आँखो से नींद ग़ायब हो गई थी । दोनो सोने का बहाना करते हुए ख़ुशियों का पंख लगाये उड़ रहे थे , सपना बुन रहे थे।
दूसरे दिन सुबह सुबह ही विमला ने अमर को यह ख़ुशख़बरी सुनाते सुहासिनी को लिवा लाने कहा तो वह ख़ुशी से झूम उठा । और शाम होते होते घर स्वागत की तैयारी में सज गया । सुहासिनी को लेने अमर जा चुका था और वे लोग कभी भी आ सकते थे , प्रतीक्षा में दिलो की धड़कने बढ़ गई और जैसे ही सुहासिनी घर के दरवाज़े पर पहुँची , सुरेश भीतर अपने कमरे में चला गया। जज़्बात उफान पर था और सुहासिनी अपनी बेटी को गोद में उठाए अपने पति के साथ जैसे ही घर के भीतर पहुँची आँखों से झरना बहने लगा MA को बेटी को देकर वह पापा के कमरे में चली गई उसे देखते ही सुरेश का जज़्बात टूट गया । पहली बार सुरेश के आँखो में आँसू थे और ज़ुबान तो पता नहीं कहाँ चला गया था।
बाप बेटी के मिलन का यह दृश्य अनुपम था । सुहासिनी शिकायत करे जा रही थी और सुरेश बिलकुल ख़ामोश, आँखों से सब कुछ बहे जा रहा था। घर के आँगन में लगे मोंगरे का फूल महकने लगा , सुहासिनी की बेटी की किलकारी से संगीत फूटने लगा , विमला मयंक पर वात्सल्य उडेर रही थी । बेटी -दामाद के प्रथम आगमन की परम्परा परवान चढ़ने लगा था।
सुहासिनी के घर आने की ख़बर पूरे मोहल्ले में फैल गई। हर कोई उसे देखने मिलने सुनने आने लगा । और रोती सुहासिनी सब से मिल रही थी। जैसे बिलकुल नहीं बदला था कुछ भी नहीं बदला था । अमर से जब यह रोना धोना नहीं देखा गया तो वह छत पर चला गया और अपने लिये खुलते द्वार को देखने लगा। आख़िर उसे भी तो शादी करनी ही थी। उसके भीतर की ताक़त बग़ावत तक जाने सोचने लगा था। सुहासिनी की वापसी ने उसमें फिर आत्मविश्वास जगा दिया था।
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