कौशल-जीवन -८

अमर को अब उचित अवसर की तलाश थी, ताकि अपनी शादी की बात कर सके। इन दिनो अमर फिर सज-धज कर निकलने लगा था, दिन मे चार-चार शर्ट तक बदल देता और अमर की प्रेम कहानी भी सुर्ख़ियाँ बटोरने लगी। लोगों का तो यहाँ तक कहना था कि अमर उसी कलर का कपड़ा पहनता हैं जिस रंग की उसकी प्रेयसी विशाखा पहनती है।
उड़ते-उड़ते जब यह बात सुरेश तक पहुँची तो सुरेश ने कहा कि लड़की के घर जाकर शादी का प्रस्ताव दे आते हैं, तो अमर की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। लेकिन जब सुरेश को यह पता चला कि विशाखा दूसरी जाति की है तो उसके मन मे हिचकिचाहट तो हुई लेकिन बेटे की ख़ुशी से बढ़कर अब कुछ नहीं था इसलिये तय दिन मेन विशाखा के घर गये।
अमर ने विशाखा को सब कुछ पहले से बता दिया था। लेकिन विशाखा ने यह बात घर मेन बताने की बजाय यह तय किया कि पहले से विवाद उत्पन्न करने की बजाय जिस दिन वे लोग आएँगे उसी दिन ही सब निपट लेंगे।
कालबेल बजाते ही दरवाज़ा विशाखा ने ही खोला और सुरेश का पैर छूते हुए भीतर ले आई। विशाखा के पापा घर में ही थे। 
औपचारिक परिचय के बाद जब सुरेश ने शादी का प्रस्ताव रखा तो ड्राइंग रूम में सन्नाटा पसर गया। प्रस्ताव के दौरान ही ड्राइंग रूम मे पहुँची विशाखा की माँ ने सीधे आपत्ति की लेकिन विशाखा के पिता ने समझदारी दिखाते हुए सोचने का वक़्त माँगते हुए बग़ैर चाय पानी के ही चलता कर दिया।
सुरेश को बुरा तो लगा था लेकिन वह अमर का चेहरा देख ख़ामोश रह गया। जबकि ग़ुस्सा अमर को भी बहुत आया था। इधर ख़ुशख़बरी के इंतज़ार मे बैठी विमला को जब पूरी घटना बताई गई तो उसने कहा कि मैं बात करने जाती हुँ। लेकिन अमर ने रोक दिया।
इस घटना को सप्ताह बीत जाने के बाद भी जब कोई ख़बर नहीं आई तो अमर बेचैन हो गया । इस बीच उसने विशाखा से मिलने की कोशिश भी की लेकिन वह कालेज भी नहीं आ रही थी।
अंत में विशाखा के घर जाने का निर्णय लेते हुए संभावित विपरीत परिस्थिति से निपटने की योजना बनाकर अमर विशाखा के घर पहुँच गया। इस बार विशाखा के पिता ने दरवाज़ा खोला और अमर को सामने देख भीतर आने का इशारा किया अमर ने पैर छूने की कोशिश की तो उसे रोकते हूर कहा रहने दो विशाखा तो तुमसे शादी करने तैयार नहीं है। 
अमर ने कहा कि यह बात वह विशाखा से सुनना चाहता है तो उसे बताया गया कि विशाखा अपने ननिहाल गई है और सप्ताह भर बाद ही लौटेगी । अमर की इच्छा तो हुई कि ननिहाल का पता पूछ लें लेकिन फिर उसने सोचा हफ़्ते भर की तो बात है । फिर वह लौट आया।
लेकिन! लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है कि विशाखा मना कर दे। वह ऐसा कूछ कर ही नहीं सकती , ज़रूर उसके घरवाले झूठ बोल रहे हैं । यही सोचते जब वह घर पहुँचा तो उदास चेहरा देख विमला ने कारण पुछा तो उसने उमस और गर्मी का बहाना बना दिया।
तभी सुहासिनी ने हँसते हुए कहा भाभी का इंतज़ार भैया पर भारी पड़ रहा है। इस पर अमर ने मुस्कुराते हुए कहा तेरे भाई के लिए लड़की की कमी है क्या?
अमर ने यह बात कह तो दी लेकिन वह जानता था कि विशाखा के अलावा वह किसी और लड़की से शादी करने की सोच भी नहीं सकता।
सप्ताह भी बीत गया तो अमर एक दिन फिर विशाखा के घर पहुँचा तो उसके वापस नहीं आने के जवाब पर उसने ननिहाल का पता पूछा । इस पर बिशाखा के पिता क्रोधित हो गए और कहने लगे कि यह शादी नहीं हो सकती , तुम दूसरी लड़की देख लो , उसे भूल जाओ।
और हाँ ! आइंदा इधर नहीं आना। यह कहते हुए घर से निकल जाने का फ़रमान सुना दिया।
अमर लौटने ही वाला था कि विशाखा कमरे में आ गई , और फिर जो कुछ हुआ वह क़तई उचित नहीं था ।और अंत में  विशाखा ने अपनी मम्मी-पापा से कह दिया कि वह अभी अमर के साथ जा रही है, और सारे रिश्ते तोड़ रही है।
अचानक हुए इस घटनाक्रम से अमर भी उत्तेजित हो गया और विशाखा को लेकर घर से निकल गया। लेकिन, समस्या यह नहीं थी कि विशाखा को लेकर वह घर जाए या न जाए। समस्या यह थी कि वह इस तरह से शादी करना नहीं चाहता था। इसलिए घर जाने के बजाय वे सीधे एम जी रोड स्थित मंजू-ममता आ गए । यहाँ उसने विशाखा को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन विशाखा ने साफ़ कह दिया कि वह मर जाएगी परंतु उस घर में अभी नहीं लौटेगी। अमर के पास अब उसे अपने घर ले जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं था।दोनो ने यहाँ का चर्चित सफ़ेद रस-मलाई खाया।
विशाखा को लेकर जब वह घर पहुँचा तो उसके लिए राहत की बात यह थी कि सुरेश नहीं था। विमला भी पुत्र मोह में अमर के क़दम को उचित बता दिया। लेकिन जब सुरेश आया और उसे जब पता चला तो उसे ग़ुस्सा बहुत आया लेकिन, विशाखा के सामने वह चुप रह गया।
किसी को कुछ नहीं सूझ रहा था कि परिस्थिति से कैसे निपटा जाय। समाज के ताने-बाने टूट रहे थे। सुहासिनी की वजह से पहले ही समाज के लोग नाराज़ थे और सामाजिक दंड देने के बाद ही ठीक हुआ था लेकिन ताना अभी भी मारा जाता था, और अब यह नया झमेला ?
भले ही वे शहर में रह रहे थे , समाज में शिक्षा का स्तर बढ़ा है लेकिन अभी भी समाज में इस तरह की शादियों को स्वीकृति नही मिल पाया था। यह अलग बात है कि सामाजिक दंड पटा कर लोग समाज में मिल जाते थे, लेकिन उनका हाल किसी से छिपा नहीं है। फिर अभी-अभी सुहासिनी का मामला ले-देकर निपटा था। समाज प्रमुखों ने भरी बैठक में क्या कुछ नहीं कहा था, यहाँ तक कि सगे रिश्ते नाते भी दूर हो गए थे।
मोहल्ले में यह ख़बर फैल चुकी थी कि अमर किसी लड़की को भगा कर ले आया है। प्रेम विवाह को लेकर यहाँ की भाषा ही यही है। भगा कर लाने वाला शब्द जितना निर्दयी है, इस शब्द के प्रहार को सहना उतना ही दुश्वार ।
लेकिन, इसके अलावा चारा ही क्या था? अमर की शादी को धूमधाम से कार्नेलिया जो सपने देखे थे वह सपना टूट चुका था। अब वे गायत्री मंदिर या आर्य समाज में शादी करने व शानदार पार्टी देने की योजना बना रहे थे । तय यह किया जाना था कि इस आयोजन में विजय की उपस्थिति सुनिश्चित हो.
इधर समाज की बैठक सुरेश के घर में ही हुई और फ़रमान जारी कर दिया गया कि जब तक निर्धारित दंड की राशि नहीं पटाई जाएगी, कोई इनके सुख-दुःख में नहीं आएगा। इस पर अमर ने यह कहते हुए आपत्ति की कि जब हम बाक़ी सामाजिक , धार्मिक व अन्य दूसरे काम को मिलजुल कर करते हैं तो सिर्फ़ शादी को अपराध बता देना उचित नहीं है तो समाज के मुखिया नाराज़ हो गए और दंड की राशि और बढ़ा दी । अमर को ग़ुस्सा बहुत आ रहा था लेकिन सुरेश ने उसे डाँट कर चुप करा दिया।
समाज प्रमुखों के जाने के बाद अमर ने कहा भी कि यह अन्याय है, छोड़ दे समाज क्या फ़र्क़ पड़ता है? अमर कहे जा रहा था, दुकान में समान बेचते समय जाति नहीं देखी जाती, सबका दिल एक जैसे धड़कता है, ईश्वर सभी को हवा-पानी, छांव-धूप एक जैसा देते हैं वे तो भेद-भाव नहीं करते फिर ये लोग कौन होते हैं? लेकिन सुरेश ने यह कहते हुए अमर को चुप करा दिया कि सामाजिक नियम न हो तो सब कुछ अस्त व्यस्त हो जाएगा। ग़लत नियम टूट रहे हैं यह भी टूट जाएगा।
फ़िलहाल तो पैसों का इंतज़ाम कर सामाजिक दंड की राशि जमा कराना पड़ेगा। और इसके बाद ही कुछ होगा। तब तक विजय भी अमेरिका से आ जाएगा। उसे ख़बर कर दी गई है। वह किस तारीख़ को आएगा , एक-दो दिन में बता देगा?

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