अपनी बात
ये सच है कि धनहीन व्यक्ति के लिए इस संसार में जीवन चलाना बहुत मुश्किल है , रोज़ स्वयं को अपने व अपने परिवार के लिए रोज़ मारना पड़ता है , लेकिन यह भी उतना ही सच है कि ईमानदारी और न्यायपूर्ण तरीक़े से धन कमाकर जीवन जीने का आनंद ही सर्वोत्तम है । इसके बाद भी धन की लालसा आदमी में शैतान ले आता है । स्वयं को भौतिक सुख में ले जाते हुए वह विकास का दावा तो करता है लेकिन असल में वह किस तरह का विनाश की ओर जा रहा है वह देखना नहीं चाहता। इसके बाद भी हम भले ही चाँद पर पहुँचने का दावा कर अपनी सोच की ऊँचाइयाँ दिखा रहे हो लेकिन अब भी हम जाति-धर्म की संकीर्णता से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। तो फिर चाँद पर पहुँचने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता।
सच कहूँ तो संकीर्ण सोच से कभी भी विकास का मज़बूत क़िला बन ही नहीं सकता और जब क़िला मज़बूत नहीं होगा तो संकीर्ण सोच से उपजे नफ़रत की आग से वह कभी भी ख़ाक हो जाएगा । और सारा विकास धरा का धरा रह जाएगा और हम वहीं खड़े होंगे जहाँ से शुरुआत किए थे।
कोरोना काल को ही देख लीजिए , जिस धर्म और उनके भगवान अल्लाह गॉड के लिए मनुष्य लड़ता रहा , क्या हुआ ? धर्म , आस्था , जाति , विकास सब एक ही पल में धराशायी हो गया। और हम अपने जीवन बचाने के संघर्ष में मानवता को ढूँढने लगे।
जीवन बचाने का यह काल भी गुज़र जाएगा ! तब क्या फिर हम वापस उसी धर्म जाति में ढकेल दिए जाएँगे या विकास का नया रास्ता ढूँढेंगे? पता नहीं ! लेकिन यह निश्चित जान ले कि हमने अब विकास की राह नहीं बदली और जाति- धर्म में उलझे रहे तो एक नये तरह का कोरोना लाने का उपक्रम कर रहे होंगे।और यह कब तक चलेगा। कोई नहीं जानता?
जीवन को जीने का सबका अपना तरीक़ा है लेकिन जीवन में जान रहे उसका एक ही उपाय है।
यही इस किताब को लिखने का ध्येय है ।
आशा है आपको यह अच्छी लगेगी और पहले की तरह आप मुझे भरपूर प्यार देंगे।
इसी विश्वास के साथ
आपका
कौशल तिवारी
34 , मीडिया सिटी
मोहबा बाज़ार
रायपुर (छत्तीसगढ़ )
मो.: 9826147155
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