कौशल-जीवन -१०
10 अमर की शादी हो गई , बेहद साधारण तरीक़े से धार्मिक रितियो के साथ। घर के बग़ल की ख़ाली ज़मीन में पार्टी दी गई। लेकिन विजय व एलिज़ाबेथ को इन सब में कोई ख़ास रुचि नहीं रही । विमला और सुरेश ने उनके इस रूखापन को लेकर कई बार टोका भी लेकिन उन दोनो में कोई बदलाव नहीं आया। यहाँ तक कि सुहासिनी और मयंक ने भी बहुत समझाया लेकिन वे अपने रूटीन को छोड़ने तैयार नहीं हुए। हाँ एलिज़ाबेथ कभी कभी अपने कैमरे में कुछ तस्वीरें उतार लेती। शादी के बाद जब सभी मेहमान चले गए तो विजय का इस्पाती ख़ामोशी फट पड़ा , यदि अमर और मयंक ने मामले में बीच बचाव नहीं करते तो विजय का घर निकाला तय था। आख़िर वह कौन सी खोज थी , जिसने विजय को सामाजिक दायित्वों से दूर कर रखा था। अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल हो रहा था । विजय को न घर के लोगों की परवाह थी और न ही मोहल्ले में चल रहे कानाफूसी की ही चिंता थी। वह अपने धुन में लगा रहा और एलिज़ाबेथ भी। परंतु इतना तो तय था कि विजय कोई नई खोज में लगा हुआ है , और कोई भी नई खोज साधारण नहीं होता। पागलपन की हद लेकर चल रहे दोनो के बीच भी कम ही बात होती । हँसना -खिलखिलाना तो किसी ने देखा ही नहीं। यहाँ